Akshay Kumar Movie : अक्षय कुमार की फिल्में क्यों नहीं चलती ज्यादा
एक समय था जब अक्षय कुमार का किसी फिल्म में होना ही दर्शकों को टिकिट खिड़की तक लाने के लिए काफी था..पर ये बन्दा शुरू से व्यापारी दिमाग का रहा है । सो जैसे जैसे फिल्में मिलती गई , इन्होंने फिल्मो की लाइने लगा दी.. हर साल 4 फिल्में । अच्छा , अक्षय के साथ दिक्कत ये भी है कि वे बहुत ज्यादा अच्छे अभिनेता भी नही है , उन का चेहरा तो अपील करता है
पर भाव उतने गहरे नही ला पाते , ना उन के बोलने का अंदाज़ बदलता है । कुल मिला कर वे किसी भी रोल में हो…लगते अक्षय कुमार ही है । और शायद यही वजह है कि उन की पिछली कुछ फिल्में बेहतर होते हुए भी पिटी है…राम सेतु और सेल्फी ऐसी फिल्में थी जो फ्लॉप तो नही ही होनी चाहिए थी । पर दर्शक उन्हें इतना ज्यादा देख चुके है कि अब वे उत्सुकता नही जगा पा रहे ।
कुछ दिन पहले मिशन रानीगंज का ट्रेलर आया था , ट्रेलर काफी कंवेंसिंग था , लग रहा था कि एक सत्य घटना पर बढ़िया मूवी देखने को मिलेगी । पर उस के बाद पता नही क्या हुआ , फ़िल्म के प्रति दर्शक का उत्साह जगा ही नही । 2 दिन पहले रिलीज हुई इस बढ़िया फ़िल्म का ये हाल है कि थियेटर में दर्शक ही नही है , इस से बेहतर दर्शक तो फुकरे 3 जैसी सेंसलेस मूवी को मिल गए थे ।
खैर , फ़िल्म मिशन रानी गंज की बात करूँ तो निश्चित ही इसे देखना एक बढ़िया अनुभव था ,
फ़िल्म की कहानी पश्चिम बंगाल के रानीगंज कस्बे में स्थित महाबीर कोलियरी कोल माइनिंग की त्रासदी पर बेस्ड है , नवम्बर 1989 की एक रात , माइनिंग लेबर रोज़ की तरह अपनी शिफ्ट पर पहुँचते है , जहाँ जमीन में करीब 150 फीट की गहराई पर कोयले की माइनिंग चल रही है । और एक गलत ब्लास्ट की वजह से पूरी माइंस में पानी भरना शुरू हो जाता है ।
कुछ माइनर्स तो बच जाते है , पर 65 माइनर माइंस के अंदर फँस जाते है । अधिकारियों को लगता है कि इतने तेज़ बहाव में ये माइनर्स नही बच पाएं होंगे , हालाँकि बचाव कार्य शुरू होता है पर उस की कोई दिशा नही है । तब एंट्री होती है अपने हीरो जसवंत गिल ( अक्षय कुमार ) की , और वे एक प्रॉपर प्लान के साथ रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू करते है। आगे क्या होता है , कैसे होता है यही सब फ़िल्म में बताया है ।
एक सच्ची घटना पर आधारित ये फ़िल्म पूरे समय आप को सीट से बांधे रखने में कामयाब रहती है । फास्ट पेस स्क्रीन प्ले है और इस वजह से दर्शक छोटी मोटी कमियों को नज़रअंदाज कर देते है और अंत तक आते आते फ़िल्म थोड़ी इमोशनल हो जाती है और यही इस कि USP है…।
सभी कलाकारों का काम बढ़िया है , अक्षय कुमार दाढ़ी वाले अक्षय कुमार लगे है , हालांकि दाढ़ी का नकलीपन साफ नज़र आता है , पर एक समय के बाद वे अपने रोल में कंवेंसिंग लगने लगते है । कुमुद मिश्रा भी शानदार रहे है , पर एक इंसान दिल जीत लेता है और वो है “रवि किशन” बन्दे ने मस्त काम किया है , उस का गुस्सा , उस का रोना , उस के हावभाव सब एकदम जबर रहे ।
फ़िल्म का निर्देशन बढ़िया है , VFX बेहतर हो सकते थे , पर लगता है कि फ़िल्म का ज्यादा बजट अक्षय को हीरो लेने में ही चला गया सो कहीं कहीं तकनीकी चीजों पे खर्चा कम किया गया है । पर ओवर ऑल , ये फ़िल्म देखी जानी चाहिए । अक्षय के लिए ना सही जसवंत गिल जैसे व्यक्तित्व की बहादुरी को जानने के लिए ही सही । देख आइए , निराश तो कतई नही होंगे।
यह भी पढे :-
भाजपा ने कीय प्रबल दावेदारों के नाम घोषित, किसको मिली कहां से टिकट
रात को अचानक आंख क्यों खुलती हैं, अचानक नींद खुलना किस बीमारी का संकेत है